रावण को कैसे मिली थी सोने की लंका ,जानिए पूरी पौराणिक कथा

By Tami

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Ravana Lanka

धर्म संवाद / डेस्क : सबने “रावण की सोने की लंका” का नाम तो सुना है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि रावण ने यह लंका खुद नहीं बनाई थी? बल्कि यह लंका भगवान शिव और माता पार्वती के लिए बनाई गई थी।

कहते हैं कि एक दिन कैलाश पर्वत पर माता पार्वती ने भगवान शिव से कहा “हे महादेव, काश हमारे लिए भी एक ऐसा महल होता जो सोने की तरह चमकता रहता।”

देवी की यह इच्छा सुनकर भगवान शिव ने देव शिल्पी विश्वकर्मा को बुलाया। विश्वकर्मा ने धन के देवता कुबेर के सहयोग से एक अद्भुत नगर बनाया — सोने की लंका। यह नगरी दिव्य सुगंध से भरी थी, दीवारें सोने की थीं और गलियाँ रत्नों से सजी थीं।

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रावण ने किया था लंका का वास्तु पूजन

जब लंका पूरी बनकर तैयार हुई, तब भगवान शिव ने कहा कि बिना वास्तु पूजा के उसमें प्रवेश नहीं किया जा सकता। उस समय रावण, जो महान शिवभक्त और विद्वान ब्राह्मण भी था, सबसे योग्य पुरोहित माना गया।

शंकर जी और पार्वती माता ने रावण को वास्तु पूजा के लिए आमंत्रित किया। पूजा सम्पन्न होने के बाद भगवान शिव ने कहा “पुरोहित जी, जो दक्षिणा चाहो मांग लो।”

रावण ने मुस्कुराते हुए कहा “महाराज, मैं इस सोने की लंका को दक्षिणा में चाहता हूँ।”

भगवान शिव का नियम था कि वे किसी से ‘ना’ नहीं कहते। इसलिए उन्होंने सोने की लंका रावण को दक्षिणा में दे दी।

पार्वती जी का शाप और लंका का विनाश

माता पार्वती को यह बात अच्छी नहीं लगी। उन्होंने रावण से कहा “जिस लंका को तुमने दान में प्राप्त किया है, वह एक दिन भस्म हो जाएगी।” और वही हुआ। वर्षों बाद जब हनुमान जी लंका पहुँचे, उन्होंने अपने पूंछ की अग्नि से उस सोने की लंका को जलाकर राख कर दिया ठीक वैसे ही जैसे पार्वती जी का शाप था।

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 ज्ञान और अभिमान की सीख

रावण जितना महान ज्ञानी, विद्वान और शिवभक्त था, उतना ही उसके भीतर अहंकार और अभिमान भी था। यही अभिमान उसके विनाश का कारण बना। यह कथा हमें सिखाती है कि ज्ञान और शक्ति तभी सार्थक हैं, जब उनमें विनम्रता हो। अन्यथा, रावण जैसा महान व्यक्ति भी पतन को प्राप्त होता है।

Tami

Tamishree Mukherjee I am researching on Sanatan Dharm and various hindu religious texts since last year .