धर्म संवाद / डेस्क : हिंदू पंचांग में सावन मास की पूर्णिमा तिथि केवल रक्षाबंधन का पावन पर्व ही नहीं लाती, बल्कि महाराष्ट्र और कोंकण क्षेत्र में मनाया जाने वाला एक विशिष्ट त्योहार ‘नारली पूर्णिमा’ भी इसी दिन आता है। यह पर्व विशेष रूप से समुद्र तटों पर रहने वाले मछुआरे समुदाय के लिए बेहद महत्वपूर्ण होता है।
यह भी पढ़े : 2 दिन रहेगी सावन पूर्णिमा : 9 अगस्त को रक्षाबंधन, इस साल नहीं रहेगी भद्रा, पूरे दिन बांध संकेंगे राखी
नारली पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है?
हिंदू धर्म में नारली पूर्णिमा का विशेष धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है। इस दिन मछुआरे समुद्र और जल के देवता वरुण देव की पूजा करते हैं। ऐसी मान्यता है कि नारियल अर्पित कर समुद्र की आराधना करने से वर्षभर समुद्री यात्रा और मछली पकड़ने का कार्य सुरक्षित रहता है तथा सभी प्रकार के संकटों से रक्षा होती है। इस दिन नारियल चढ़ाने की परंपरा होने के कारण इसे ‘नारियल पूर्णिमा’ भी कहा जाता है। यह पूजा सुख, समृद्धि और सुरक्षा की कामना के साथ की जाती है।
नारली पूर्णिमा 2025 में कब है?
- पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: 8 अगस्त 2025, दोपहर 02:12 बजे
- पूर्णिमा तिथि समाप्त: 9 अगस्त 2025, दोपहर 01:24 बजे
- उदया तिथि मान्य होने के कारण नारली पूर्णिमा 9 अगस्त को मनाई जाएगी।
पूजा के शुभ मुहूर्त
- ब्रह्म मुहूर्त: सुबह 04:22 से 05:04 तक
- अभिजीत मुहूर्त: दोपहर 12:43 से 01:37 तक
- विजय मुहूर्त: दोपहर 02:40 से 03:33 तक
- गोधूलि मुहूर्त: शाम 07:06 से 07:27 तक
नारली पूर्णिमा की पूजा विधि
- प्रातः स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र पहनें और समुद्र किनारे जाएं।
- शुभ मुहूर्त में समुद्र देव और वरुण देवता की विधिपूर्वक पूजा करें।
- अपनी नाव को धोकर सजाएं और उसका भी पूजन करें, क्योंकि यह उनके जीवन का प्रमुख साधन होता है।
- पूजा में नारियल, पुष्प, मिठाई और अक्षत आदि का उपयोग करें।
- पूजा के पश्चात नारियल समुद्र में अर्पित करें और प्रसाद का वितरण करें।
नारली पूर्णिमा सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि समुद्र से जीवन यापन करने वाले समुदाय के प्रति आस्था, सम्मान और प्रकृति के साथ संतुलन की भावना का प्रतीक है। यह पर्व हमें प्रकृति की शक्ति को स्वीकारने और उसकी रक्षा करने की प्रेरणा भी देता है।






