धर्म संवाद / डेस्क : भगवान बुद्ध की कई प्रतिमाएँ देखने को मिलती हैं। ज्यादातर उन्हे ध्यान वाले मुद्रा में ही देखा जाता है। पर उसके अलावा उनकी लेटी हुई प्रतिमा भी बेहद प्रचलित है। भगवान बुद्ध की लेटी हुई प्रतिमा न केवल एक धार्मिक या सांस्कृतिक धरोहर है, बल्कि यह हमें जीवन, मृत्यु और मोक्ष के गूढ़ रहस्यों से भी अवगत कराती है। यह प्रतिमा भगवान बुद्ध के जीवन के अंतिम समय को दर्शाती है जिसे “महापरिनिर्वाण” कहा जाता है।
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कथाओं के अनुसार, महात्मा बुद्ध की मृत्यु जहरीला भोजन खाने से हुई थी। दरअसल, बुद्ध को अपना आखिरी भोजन कुन्डा नामक एक लोहार से एक भेंट के रूप में प्राप्त किया था। जब उन्होंने भोजन किया, तभी उन्हें इसका आभास हो गया था और उन्होंने मेजबान को अपने बाकी शिष्यों को उस भोजन को परोसने से मना कर दिया। उन्होंने कुंडा को न तो कोई दोष दिया और न ही उस पर गुस्सा हुए। उन्होंने उससे कहा कि उन्होंने भोजन कर लिया है और भोजन बेहद स्वादिष्ट है लेकिन उन्हें लगता है कि उनके शिष्य इस भोजन को नहीं पचा पायेंगे। इस प्रकार वो अपने मेजबान को सच का आभास कराये बिना, उनपर क्रोधित हुए बिना न केवल उनके पापों को क्षमा कर दिया बल्कि उन्हें और भी पाप करने से रोक दिया। उन्होंने बाकी भोजन जमीन में गड़वा दिया।
जब गौतम बुद्ध भोजन ग्रहण करके आए, तो उनका शरीर धीरे-धीरे कमजोर होने लगा। उन्हें एहसास हो गया कि उनका अंतिम समय पास आ चुका है। उन्होंने अपने शिष्यों को बुलाया और कुशीनगर ले चलने को कहा, जहां वह अपना अंतिम समय बिताना चाहते थे। कुशीनगर पहुंचकर गौतम बुद्ध ने दो विशाल शाल के पेड़ों के बीच एक जगह चुनी और अपनी दाहिनी करवट लेट गए, सिर अपने हाथ पर टिका लिया। उस समय महात्मा बुद्ध की उम्र 80 साल थी।
गौतम बुद्ध वहीं अपने हाथ पर सिर टिकाकर लेट गए। वो समझ गए थे कि उनका अंतिम समय आ गया है। गौतम बुद्ध की इस मुद्रा को आज ‘महापरिनिर्वाण’ के नाम से जाना जाता है। उन्हें इस अवस्था में देख उनके शिष्य उनका अंतिम उपदेश सुनने उनके आसपास इकठ्ठा हो गए। उन्होंने अपने अंतिम संदेश में कहा था ‘अप्प दीपो भव’, यानि अपने दीपक स्वयं बनो। उनके कहने का अर्थ था मनुष्य को अपनी मुक्ति का मार्ग स्वयं ढूंढना चाहिए। उसे किसी और की बातों या बहकावे में नहीं आना चाहिए। वो चाहते थे उनके शिष्य अपने मोक्ष का मार्ग स्वयं तलाश करें। बुद्ध ने इसी मुद्रा में अपना अंतिम संदेश दिया और अपना देह त्याग दिया।
त्तर प्रदेश के कुशीनगर में महापरिनिर्वाण मंदिर भी है, जहां भगवान बुद्ध की 6.1 मीटर ऊंची मूर्ति इसी लेटी हुई मुद्रा में रखी हुई है। इस मूर्ति में भगवान बुद्ध पश्चिम दिशा की तरफ लेटे हुए दिखाई देते हैं, जो महापरिनिर्वाण के लिए सही दिशा मानी जाती है।