धर्म संवाद / डेस्क : कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि पर पश्चिम बंगाल, ओडिशा और त्रिपुरा में श्रद्धा एवं भक्ति के साथ मनाई जाने वाली जगद्धात्री पूजा का गहरा आध्यात्मिक महत्व है। “जगद्दा” का अर्थ है जगत, और “धात्री” का अर्थ है धारण करने वाली यानी माँ जगद्धात्री संपूर्ण सृष्टि की धारक और पालनकर्त्री हैं। यह पर्व केवल भक्ति का उत्सव नहीं, बल्कि एक आंतरिक साधना भी है जो हमें अहंकार, असंतुलन और विकारों से मुक्त होकर आत्म-शक्ति, विवेक और संतुलन की ओर ले जाती है। 2025 में यह पूजा 31 अक्टूबर 2025 को मनाई जाएगी।
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पूजा का पौराणिक इतिहास और कथा
कथा के अनुसार, महिषासुर पर विजय के बाद देवताओं के भीतर अहंकार उत्पन्न हो गया। वे भूल गए कि उनकी शक्ति का स्रोत स्वयं देवी ही हैं। उन्हें सबक सिखाने के लिए माँ दुर्गा ने जगद्धात्री रूप धारण किया और देवताओं से कहा कि वे एक तिनका हटाएं। परंतु उनकी तमाम कोशिशों के बावजूद वह तिनका नहीं हटा, और तभी उन्हें अपनी भूल का एहसास हुआ। देवताओं ने नतमस्तक होकर माँ से क्षमा मांगी।
एक अन्य प्रसिद्ध कथा के अनुसार, माँ जगद्धात्री ने हस्तिरूपी असुर करिंद्रासुर का वध किया था। हाथी यहाँ अहंकार का प्रतीक है, और देवी द्वारा उसका वध यह दर्शाता है कि माँ जगद्धात्री संतुलन और विनम्रता की प्रतीक हैं, जो हमें शक्ति के साथ संयम का भी पाठ सिखाती हैं।
पूजा का महत्व और संदेश
“जगद्धात्री” का अर्थ है वह जो जगत को धारण करती हैं। इससे स्पष्ट होता है कि माँ न केवल सृष्टि की रचयिता हैं, बल्कि उसकी संतुलनकारी शक्ति भी हैं।
यह पूजा हमें सिखाती है कि शक्ति तभी सार्थक है जब उसमें विनम्रता और संतुलन हो। साथ ही, इस पर्व के दौरान समुदायों में सजावट, झांकियाँ और सामूहिक आराधना के माध्यम से सौहार्द, भक्ति और सांस्कृतिक एकता का संदेश फैलता है।
घर पर सरल पूजा-विधि
- प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- पूजा-स्थान को गंगाजल या हल्दी-सिंदूर से शुद्ध करें।
- माँ जगद्धात्री की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
- उन्हें नारंगी या लाल वस्त्र अर्पित करें — ये रंग माँ के तेज और सात्विक रूप का प्रतीक हैं।
- धूप-दीप जलाकर, पुष्प और मालाएं अर्पित करें।
- पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, शक्कर) से अभिषेक करें, यदि संभव हो।
- अंत में आरती करें और श्रद्धा-भाव से प्रार्थना करें —
“हे जगद्धात्री माता, अहंकार को दूर करो और मुझे विवेक, धैर्य व संतुलन प्रदान करो।”






