धर्म संवाद / डेस्क : कहा जाता है काशी भगवान शिव की नगरी है। काशी में 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक बाबा विश्वनाथ मौजूद है। उन्हें काशी का राजा माना जाता है। साथ ही काल भैरव को इस शहर का कोतवाल कहा जाता है। मान्यता के अनुसार भगवान शिव के आदेश पर काल भैरव पूरे शहर की व्यवस्था संभालते हैं। काशी में काल भैरव की ही मर्जी चलती है। काशी में एक बहुत ही पुरानी कहावत है कि ”पहले ‘काशी कोतवाल’ की पूजा फिर काम दूजा…”। जी हां, इस शहर में कोई भी शुभ काम करने से पहले ‘काशी कोतवाल’ यानी काल भैरव की पूजा की जाती है। चलिए आपको बताते हैं कि बाबा काल भैरव काशी के कोतवाल बने कैसे।
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पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान ब्रह्माजी और विष्णुजी के बीच चर्चा छिड़ गई कि उन में से कौन शक्तिशाली है। दोनों अपने अपने तर्क दे रहे थे। विवाद के बीच भगवान शिव की चर्चा होने लगी। चर्चा के दौरान ब्रह्माजी के पांचवें मुख ने भगवान शिव की कुछ आलोचना कर दी।अपनी आलोचना को अपमान समझकर बाबा भोलेनाथ बहुत क्रोधित हो गए। उनके इस क्रोध से काल भैरव का जन्म हुआ। काल भैरव ने ब्रम्हा जी का पांचवा मुख काट दिया।
ब्रह्मा का शीश काटने के कारण इन्हें ब्रह्म हत्या का पाप लगा। ब्रह्मा जी का कटा हुआ मुख काल भैरव के हाथ से चिपक गया। तब महादेव ने भैरव से कहा कि तुम्हे ब्रह्म हत्या का पाप लग चुका है और इसकी सजा यह है कि तुम्हे एक सामान्य व्यक्ति की तरह तीनों लोकों का भ्रमण करना होगा।जिस जगह यह मुख तुम्हारे हाथ से छूट जाएगा, वहीं पर तुम इस पाप से मुक्त हो जाओगे।शिवजी की आज्ञा से काल भैरव तीनों लोकों की यात्रा पर चल दिए।
तीनों लोकों का भ्रमण करते हुए जब भैरव बाबा काशी पहुंचे तब यहाँ आकर उन्हें ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिल गई। काल भैरव को पाप से मुक्ति मिलते ही भगवान शिव वहां प्रक्रट हुए और उन्होंने काल भैरव को वहीं रहकर तप करने का आदेश दिया। कहा जाता है उसके बाद से काल भैरव इस नगरी में बस गए। एक अन्य किंवदंती के अनुसार ब्रह्महत्या का श्राप दूर होने के बाद, भगवान शिव ने काल भैरव को शहर के संरक्षक के रूप में काशी में रहने का आदेश दिया।
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भगवान शिव ने काल भैरव को आशीर्वाद दिया कि तुम इस नगर की रक्षा करोगे और यहाँ के कोतवाल कहे जाओगे और युगो-युगो तक तुम्हारी इसी रूप में पूजा की जाएगी। कहा जाता है कि शिव का आशीर्वाद पाकर काल भैरव काशी में ही बस गए और वो जिस स्थान पर रहते थे वहीं काल भैरव का मंदिर स्थापित है।
आपको बता दे काल भैरव का मंदिर काशी के कोतवाली थाने के ठीक पीछे हैं। थाने के थानेदार के मुख्य कुर्सी पर बाबा काल भैरव का स्थान निर्धारित है। काल भैरव मंदिर का साल 1715 में बाजीराव पेशवा ने जीर्णोद्वार करवाया था। वास्तुशास्त्र के अनुसार बना यह मंदिर आज तक वैसा ही है। वाराणसी में भैरव के दण्डपाणी भैरव, क्षेत्रपाल भैरव, लाट भैरव जैसे कुल आठ रूप है। जैसा प्रशासनिक सिस्टम में होता है। सभी स्थलों की अर्जी यहां आती है और बाबा कालभैरव बाबा विश्वनाथ तक पहुँचाते है। यहां न्याय तक बाबा विश्वनाथ नही बल्कि काल भैरव करते है। काशी में कोई भी अधिकारी आता है पहले बाबा का दर्शन करता है उसके बाद ही विश्वनाथ के दर्शन करता है। कहा जाता है कि काशी में जिसने काल भैरव के दर्शन नहीं किए, उसको बाबा विश्वनाथ की पूजा का भी फल नहीं मिलता है।