गोवर्धन पूजा 2025: केवल भगवान कृष्ण नहीं, प्रकृति और संवेदना का पर्व

By Tami

Published on:

Govardhan Puja 2025

धर्म संवाद / डेस्क : गोवर्धन पूजा केवल भगवान कृष्ण की आराधना नहीं, बल्कि प्रकृति, गोमाता और धरती के प्रति कृतज्ञता का उत्सव है। यह पर्व हमें सिखाता है कि सच्ची भक्ति दिखावे में नहीं, बल्कि संवेदना में है। आज जब पूजा इंस्टाग्राम की तस्वीरों और ट्रेंडिंग पोस्ट तक सिमट चुकी है, तब ज़रूरत है श्रद्धा के असली अर्थ को समझने की।

यह भी पढ़े : आखिर श्री कृष्ण ने अपनी छोटी ऊँगली में ही गोवर्धन को धारण क्यों किया

गोवर्धन पूजा का वास्तविक अर्थ

दीपावली के अगले दिन मनाई जाने वाली गोवर्धन पूजा प्रकृति, गोवंश और सामूहिक श्रम का प्रतीक पर्व है। यह वही त्योहार है जो हमें याद दिलाता है कि मिट्टी, जल और जीव-जंतु की सेवा ही असली आराधना है। पूजा तब पूर्ण होती है जब धरती मुस्कुराती है — न कि सिर्फ कैमरा।

WhatsApp channel Join Now
Telegram Group Join Now
Instagram Join Now

कृष्ण की कथा और सामाजिक संदेश

जब इंद्र के अहंकार से गोकुल में भीषण वर्षा हुई, तब कृष्ण ने अपनी कनिष्ठा उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठाया। यह केवल चमत्कार नहीं, बल्कि सामूहिकता और साहस का प्रतीक था। कृष्ण का यह संदेश था कि असली ईश्वर वही है जो हमें संकट से निकालने की प्रेरणा देता है — धरती, गाय और श्रम ही हमारे सच्चे देवता हैं।

प्रकृति पूजा का संदेश

गोवर्धन पूजा असल में इको-फ्रेंडली फेस्टिवल है। गोबर, मिट्टी और फूलों से गोवर्धन बनाना धरती के प्रति सम्मान का प्रतीक है। लेकिन आज यह परंपरा कृत्रिम सजावट और प्लास्टिक से ढकती जा रही है। “गोवर्धन पूजा अब इंस्टाग्राम पोस्ट बन गई है” — यह वाक्य हमारे समय की सच्चाई बन चुका है।

श्रद्धा बनाम दिखावा

आज भक्ति से ज्यादा भोग पर ध्यान है। पहले गाँवों में लोग मिलकर पूजा करते थे, अब हर घर में अलग-अलग “रील” तैयार होती है। श्रद्धा अब स्क्रीन की चमक में झिलमिलाती है, धरती की सादगी में नहीं। गोवर्धन पूजा हमें याद दिलाती है कि पूजा का अर्थ केवल आरती नहीं, जिम्मेदारी भी है।

गाय: पूजा का केंद्र और हमारी भूल

भारत में गाय को “माता” कहा जाता है, पर वही गाय सड़कों पर भूख से मरती है। गोवर्धन पूजा का सार गाय की सेवा है, पर आज हम सिर्फ पूजा की थाली सजाते हैं, चारा नहीं देते। यह पर्व हमें जगाता है कि पूजा तभी सार्थक है जब उसमें करुणा और कर्तव्य हो।

See also  छठी मैया के प्रिय भोग: जानें कौन से प्रसाद उन्हें सबसे अधिक पसंद हैं
आधुनिकता और श्रद्धा का विरोधाभास

शहरी जीवन में यह पर्व सेल्फी सीज़न बन चुका है। पर ग्रामीण भारत में अब भी यह त्योहार मिट्टी, गाय और गीतों की खुशबू से महकता है। विकास ने हमें सुविधा दी है, पर संवेदना छीन ली है। यही कारण है कि गोवर्धन पूजा अब पहले जैसी आत्मीयता से नहीं मनाई जाती।

गोवर्धन पूजा और पर्यावरण

जब जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण संकट बढ़ रहा है, तब गोवर्धन पूजा पहले से कहीं ज्यादा प्रासंगिक हो गई है। यह हमें सिखाती है —

  • “ईश्वर की पूजा से पहले धरती की सेवा जरूरी है।”
  • अगर इस दिन हम पेड़ लगाएँ, गोशाला में सेवा करें या पशुओं को भोजन दें, तो यही असली पूजा होगी।
  • तीन संकल्प जो गोवर्धन पूजा को सार्थक बनाते हैं
  • प्रकृति के प्रति कृतज्ञता: हर पूजा के बाद एक पेड़ लगाना या पशु की सेवा करना।
  • सादगी का पुनर्जागरण: दिखावे की जगह सच्ची भावना अपनाना।
  • सामूहिकता का पुनर्स्थापन: मिल-जुलकर पूजा करना, समाज में संवाद और संवेदना बनाए रखना।
श्रद्धा का नया अर्थ

श्रद्धा केवल झुकना नहीं, जुड़ना है — धरती से, जल से, पशु से और इंसान से। जब श्रद्धा जिम्मेदारी बनती है, तब वह सच्ची भक्ति होती है। कृष्ण का संदेश भी यही है —“जब संकट आए, तो पर्वत उठाओ — पर मिलकर।”

गोवर्धन पूजा 2025 का संदेश

इस वर्ष, आइए संकल्प लें कि “गोवर्धन पूजा से श्रद्धा बढ़े, दिखावा नहीं।” दीप जलाते समय यह वचन लें कि श्रद्धा केवल आरती की लौ में नहीं, व्यवहार की रोशनी में भी झले। क्योंकि जब श्रद्धा सच्ची होती है, तो ईश्वर अपने आप भीतर उतर आते हैं — और तब हर मन स्वयं गोवर्धन पर्वत बन जाता है।

Tami

Tamishree Mukherjee I am researching on Sanatan Dharm and various hindu religious texts since last year .