रामायण और रामचरितमानस में अंतर

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सोशल संवाद / डेस्क : रामायण की रचना महर्षि वाल्मीकि ने की थी । इसमें श्रीराम के सम्पूर्ण जीवन का वृतांत है । और उनके लीलाओं का वर्णन है । रामचरितमानस 16वीं शताब्दी में भारतीय भक्ति कवि तुलसीदास द्वारा लिखा गया था। दोनों काव्य ही श्रीराम के जन्म से लेकर अंत तक की व्याख्या देते है । पर उन दोनों में अंतर है । चलिए जानते है क्या हैं वे अंतर ।

  • महर्षि वाल्मीकि जी ने रामायण की रचना प्रभु श्रीराम के जीवन काल में ही की थी। श्री राम का काल 5114 ईसा पूर्व का माना जाता है, जबकि गोस्वामी तुलसीदासजी ने रामचरित मानस को मध्यकाल अर्थात विक्रम संवत संवत्‌ 1631 अंग्रेंजी सन् 1573 में रामचरित मान का लेखन प्रारंभ किया और विक्रम संवत 1633 अर्थात 1575 में पूर्ण किया था। एक शोध के अनुसार रामायण का लिखित रूप 600 ईसा पूर्व का माना जाता है।अगर सरल शब्दों में बताय तो वाल्मीकि जी के रामायण की रचना त्रेता युग में हुई थी और रामचरितमानसकी रचना कलयुग में ।
  • रामायण सात अध्यायों से बनी है – बालकांडम, अयोध्याकांडम, अरण्यकांडम, किष्किंदा कांड, सुंदर कांड, युद्ध कांड और उत्तर कांड। रामचरितमानस भी सात अध्यायों से बना है, केवल एक अंतर है कि तुलसीदास ने युद्ध कांड को लंका कांड में बदल दिया।
  • महर्षि वाल्मीकि जी ने रामायण को संस्कृत भाषा में लिखा था जबकि तुलसीदासजी ने रामचरित मानस को अवधी में लिखा था।

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  • रामायण में 24000 हजार श्लोक और 500 सर्ग तथा 7 कांड है। रामचरित मानस में श्लोक संख्या 27 है, चौपाई संख्या 4608 है, दोहा 1074 है, सोरठा संख्या 207 है और 86 छन्द है।
  • वाल्मीकि कृत रामायण में राम को एक साधारण लेकिन उत्तम पुरुष के रूप में चित्रित किया है, जबकि रामचरित मानस में पात्रों और घटनाओं का अलंकारिक चित्रण किया गया है। यानि की श्रीराम को विष्णु के अवतार भगवान् राम की तरह दर्शाया गया है।
  • वाल्मीकि रामायण में ऋषि गौतम की पत्नी अहिल्या को अदृश्य हो उसी आश्रम में रहने का श्राप मिला था। जबकि रामचरितमानस में वे पत्थर की शिला बन जाती हैं। वाल्मीकि रामायण में श्रीराम अहिल्या का उद्धार उनके पैरों को छूकर करते हैं, जबकि रामचरितमानस में श्रीराम अपने पैर को अहिल्या की शिला पर रखकर अपनी चरण धूलि से उसका उद्धार करते हैं।
  • वाल्मीकि रामायण में भगवान शंकर के “पिनाक” धनुष का वर्णन है, जिसे श्रीराम ने तोड़ा। किन्तु रामचरतिमानस में उसे केवल “शिव धनुष” कहा गया है। 
  • रामचरितमानस में खर-दूषण के संहार के समय ही रावण समझ जाता है कि श्रीराम नारायण के अवतार हैं। किन्तु वाल्मीकि रामायण में युद्धकांड में कुम्भकर्ण एवं मेघनाद की मृत्यु के बाद रावण को समझ आता है कि श्रीराम भगवान विष्णु के अवतार हैं।
  • वाल्मीकि रामायण में हनुमान जी को मनुष्य बताया गया है जो वानर समुदाय के थे और वन में रहते थे। वानर = वन (जंगल) + नर (मनुष्य) जबकि रामचरितमानस में हनुमान को वानर (बन्दर) प्रजाति का बताया गया है। 
  • रामचरितमानस के अनुसार रामसेतु का निर्माण नल एवं नील दोनों ने किया था क्यूंकि उन्हें श्राप मिला था कि उनके हाथ से छुई वस्तु पानी में नहीं डूबेगी। किन्तु वाल्मीकि रामायण में रामसेतु का निर्माण केवल नल ने किया था क्यूंकि वे असाधारण शिल्पी थे और विश्वकर्मा का अंश थे। इसी कारण रामसेतु को “नलसेतु” भी कहा जाता है।
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