धनतेरस: समृद्धि नहीं, संवेदना का उत्सव

By Tami

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धनतेरस

धन से पहले ध्यान — यही है सच्ची समृद्धि

धर्म संवाद / डेस्क : धनतेरस का नाम लेते ही मन में दीपों की उजास, सोने-चांदी की झिलमिलाहट और खरीदारी का उत्साह जाग उठता है। लेकिन क्या धनतेरस केवल शॉपिंग और सोने की चमक तक सीमित है? नहीं। इसका गहरा अर्थ ‘धन’ के साथ ‘ध्यान’ और ‘धर्म’ से भी जुड़ा हुआ है।

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धनतेरस का असली अर्थ

‘धन’ शब्द संस्कृत के ‘धना’ से बना है, जिसका अर्थ केवल संपत्ति नहीं, बल्कि सुख, संतोष और स्वास्थ्य का संगम है। प्राचीन ग्रंथों में इसे ‘धनत्रयोदशी’ कहा गया है, क्योंकि इसी दिन भगवान धनवंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। इसलिए यह दिन न सिर्फ धन की पूजा का, बल्कि स्वास्थ्य, संतुलन और जीवन के कल्याण का प्रतीक भी है।

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त्योहार नहीं, दर्शन है धनतेरस

आज के समय में धनतेरस का अर्थ अक्सर खरीदारी तक सीमित हो गया है — लेकिन भारतीय दर्शन हमें सिखाता है कि असली समृद्धि प्रेम, करुणा और संतोष में है। अगर घर में एकता, मन में शांति और समाज में संवेदना है, तो वही सबसे बड़ा ‘धन’ है।

धनतेरस हमें याद दिलाता है कि लक्ष्मी तिजोरी में नहीं, व्यवहार में बसती हैं। यह दिन हमें सिखाता है कि धन का उपयोग दूसरों की भलाई, स्वास्थ्य और सेवा में हो — न कि दिखावे में।

पुरानी परंपराओं का वैज्ञानिक अर्थ

मिट्टी के दीप जलाना केवल सजावट नहीं, बल्कि अंधकार मिटाने का प्रतीक है। तांबे या पीतल के बर्तन खरीदना स्वास्थ्य और सकारात्मक ऊर्जा से जुड़ा हुआ है। ये परंपराएँ हमें प्रकृति से जोड़ती हैं और पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखती हैं।

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धन और धर्म का संतुलन

महाभारत में कहा गया है — “धनं धर्मेण सञ्चयेत्” यानी धन को धर्म के मार्ग से अर्जित करो। जब धन ईमानदारी, परिश्रम और सेवा से अर्जित होता है, तभी वह सुख देता है। अन्यथा वह केवल अहंकार और दिखावे का माध्यम बन जाता है।

आधुनिक दौर में धनतेरस का संदेश

आज सोशल मीडिया और ऑनलाइन सेल्स ने धनतेरस को एक प्रतिस्पर्धा में बदल दिया है। लेकिन असली उत्सव तब है जब हम अपने धन से किसी जरूरतमंद की मदद करें, किसी बीमार का इलाज करवाएँ, या किसी बच्चे की शिक्षा में सहयोग दें।

यही सच्ची लक्ष्मी पूजा है — जब हमारा धन किसी और के जीवन में रोशनी लाए।

स्वास्थ्य और संतुलन का पर्व

धनतेरस का एक आयुर्वेदिक महत्व भी है। इस दिन मौसम बदलता है, शरीर को रोगों से बचाने की आवश्यकता होती है। इसलिए भगवान धनवंतरि की पूजा हमें याद दिलाती है कि स्वास्थ्य ही सबसे बड़ा धन है।

समापन: मन का दीप जलाइए

धनतेरस केवल खरीदारी का दिन नहीं, बल्कि आत्मचिंतन और आभार का पर्व है।
अपने घर के साथ-साथ मन की सफाई करें, भीतर के अंधकार को पहचानें, और करुणा, संयम व सेवा का दीप जलाइए।

क्योंकि सच्ची समृद्धि तब होती है जब हम दूसरों के जीवन में प्रकाश फैलाते हैं।
इस धनतेरस, सोने की नहीं — मन की चमक बढ़ाइए।

Tami

Tamishree Mukherjee I am researching on Sanatan Dharm and various hindu religious texts since last year .