धर्म संवाद / डेस्क : उत्तराखंड के चारधामों में से एक बदरीनाथ धाम के कपाट 25 नवंबर को शीतकाल के लिए बंद कर दिए जाएंगे। इस पवित्र प्रक्रिया की शुरुआत 21 नवंबर से हो चुकी है। इससे पहले गंगोत्री, यमुनोत्री और केदारनाथ धाम के कपाट भी विधिवत बंद किए जा चुके हैं। अब बदरीनाथ धाम में परंपरागत रूप से चार दिनों तक चलने वाली विशेष पूजा-अर्चना के साथ कपाट बंद करने की रस्में संपन्न की जा रही हैं।
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21 नवंबर – पहले चरण की शुरुआत
कपाट बंदी के प्रथम दिन भगवान गणेश की विशेष पूजा संपन्न की गई। बदरीनाथ धाम परिसर में स्थित प्राचीन गणेश मंदिर के कपाट सबसे पहले बंद किए गए। यही इस प्रक्रिया का पहला और अत्यंत महत्वपूर्ण चरण माना जाता है।
22 नवंबर – आदि केदारेश्वर और आदि गुरु शंकराचार्य की पूजा
दूसरे दिन आदि केदारेश्वर भगवान और आदि गुरु शंकराचार्य की आवाहन पूजा की जाती है। पूजा-अर्चना के बाद इन दोनों मंदिरों के कपाट भी बंद कर दिए जाते हैं।
23 नवंबर – खांडू/खड़क पुस्तक की परंपरा
तीसरे दिन वेद ज्ञान का प्रतीक मानी जाने वाली खांडू (खड़क) पुस्तक को पवित्र रीति से बंद किया जाता है। मान्यता है कि इस दिन से 25 नवंबर तक वेद पाठ में विराम रखा जाता है, इसे शास्त्रों की मौन साधना भी कहा जाता है।
24 नवंबर – श्री महालक्ष्मी का आवाहन
चौथे दिन धाम में माता महालक्ष्मी का आवाहन किया जाता है। इसी परंपरा के तहत पूर्व मुख्य पुजारी (रावल) सखी भाव में स्त्री वेश धारण करते हैं और माता लक्ष्मी का गर्भगृह में प्रवेश कराते हैं। यह रस्म भगवान विष्णु के साथ लक्ष्मी के शीतकालीन मिलन का प्रतीक मानी जाती है।
25 नवंबर – अंतिम श्रृंगार और कपाट बंद
शीतकाल के अंतिम दिन भगवान बदरी विशाल के पवित्र विग्रह का पीले पुष्पों से मनोहारी श्रृंगार किया जाता है।
दोपहर 2:56 बजे, पंचांग गणना के अनुसार, पंच-पूजा की अंतिम विधि के साथ कपाट शीतकाल के लिए बंद कर दिए जाएंगे।
कपाट बंद होने के बाद –
- कुबेर और उद्धव का विग्रह पांडुकेश्वर के योग ध्यान बद्री मंदिर ले जाया जाएगा और वहां छह महीने तक पूजा होती रहेगी।
- गरुड़ और आदि गुरु शंकराचार्य की गद्दी जोशीमठ के नरसिंह मंदिर में स्थापित की जाएगी।
- मंदिर में जल रही अखंड ज्योति भी छह महीने तक सुरक्षित रखी जाती है।
26–27 नवंबर: शीतकालीन प्रवास के लिए प्रस्थान
- 26 नवंबर की सुबह पूजा-विधि के साथ उद्धव जी, कुबेर जी और आदि शंकराचार्य की गद्दी शीतकालीन प्रवास के लिए पांडुकेश्वर और जोशीमठ की ओर प्रस्थान करेंगी।
- 27 नवंबर को गद्दी श्री नरसिंह मंदिर, ज्योतिर्मठ पहुंचती है।
- इसी दौरान भगवान बदरी नारायण के मूर्तिमान स्वरूप की पूजा भी नरसिंह मंदिर में जारी रहती है, जिससे भक्तों की श्रद्धा में कोई विराम नहीं आता।
इस परंपरा का आध्यात्मिक संदेश
बदरीनाथ धाम में कपाट बंद करने की प्रक्रिया यह दर्शाती है कि देवताओं के शीतकालीन प्रवास के साथ ही हिमालय का यह पवित्र क्षेत्र विश्राम में प्रवेश करता है। जबकि नीचे मैदानी क्षेत्रों में भगवान की पूजा-अर्चना निरंतर जारी रहती है।






