धर्म संवाद / डेस्क : हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से सप्तमी तिथि तक छठ पूजा मनाया जाता है। इस दौरान सूर्यदेव और छठी मैया की पूजा होती है। इस साल छठ पूजा 5 नवम्बर से नहाय-खाय के साथ शुरू होगी। इसके बाद छठ पर्व चार दिनों तक चलते हुए खरना, संध्या अर्घ्य, प्रात:कालीन अर्घ्य के साथ 8 नवम्बर को समाप्त हो जाएगा। छठ पर्व खासतौर से बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश के कई राज्यों में मनाया जाता है। यह पर्व साल में दो बार मनाया जाता है। सूर्य देवता जीवन और ऊर्जा के स्रोत हैं, और छठ पूजा में उन्हें धन्यवाद दिया जाता है। सूर्य और छठी मैया के उपासना के इस महापर्व को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। चलिए जानते हैं वे पौराणिक कहानियां ।
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राजा प्रियव्रत की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, राजा प्रियव्रत की कोई संतान नहीं थी। उन्होंने सूर्य देवता की पूजा की और उन्हें एक पुत्र प्राप्त हुआ। लेकिन उस पुत्र की मृत्यु हो गई। राजा प्रियव्रत पुत्र के शव को लेकर श्मशान घाट गए और दुख में डूबकर अपने प्राण त्यागने ही वाले थे कि तभी ब्रह्मा जी की मानस पुत्री देवी षष्ठी प्रकट हुईं। देवी ने राजा से कहा, “मैं सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हूँ, इसलिए मेरा नाम षष्ठी है। तुम मेरी पूजा करो और लोगों में इसका प्रचार-प्रसार करो।” राजा प्रियव्रत ने फिर से सूर्य देवता की पूजा की और उन्हें वरदान मिला कि उनका पुत्र जीवित हो जाएगा। तब से छठ पूजा मनाई जाती है।
श्रीराम और माता सीता की कथा
रामायण के अनुसार, रावण का वध कर अयोध्या आने के बाद भगवान श्रीराम और माता सीता ने कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को उपवास रखा था और सूर्य देव की पूजा अर्चना की थी। सप्तमी को सूर्योदय के समय दोबारा पूजा-आराधना से सूर्यदेव का आशीर्वाद प्राप्त किया था।
महाभारत में छठ पूजा की कथा
कथाओं में छठ व्रत के प्रारंभ को द्रौपदी से भी जोड़कर देखा जाता है। कहते हैं द्रौपदी ने पांच पांडवों के बेहतर स्वास्थ्य और सुखी जीवन लिए छठ व्रत रखा था और सूर्य की उपासना की थी, जिसके परिणामस्वरुप पांडवों को उनको खोया राजपाट वापस मिल गया था।