धर्म संवाद / डेस्क : हमारे देश में शादियाँ किसी त्योहार से कम नहीं होती। जिस तरह त्योहार की खुशी होती है उसी तरह घर में किसी की शादी हो तो खुशी होती है। त्योहार की तरह शादी भी धूमधाम से की जाती है। जब मनुष्यों की शादी इतनी धूमधाम से होती है तो हमारे भगवानों की शादी भी कितने हर्षोल्लास के साथ होती होगी। ऐसा ही एक शादी का त्योहार है मीनाक्षी तिरुकल्याणम।
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मीनाक्षी थिरुकल्याणम का त्यौहार भगवान शिव के सुंदरेश्वर स्वरूप के साथ मीनाक्षी अम्मन के दिव्य विवाह का जश्न मनाता है। यह भव्य उत्सव तमिलनाडु की सांस्कृतिक राजधानी मदुरै में आयोजित किया जाता है और यह यहाँ के सबसे बड़े आयोजनों में से एक है। यह त्योहार तमिल कैलेंडर के अनुसार ‘चिथिरई’ महीने के दौरान मनाया जाता है। यह उत्सव एक महीने तक चलता है। पहले 15 दिन देवी मीनाक्षी को समर्पित हैं और शेष 15 दिन अलागर के लिए मनाए जाते हैं, जिन्हें महाविष्णु का एक रूप माना जाता है।
मीनाक्षी देवी और भगवान सुंदरेश्वर की कहानी सब से अलग है। किंवदंती के अनुसार, मीनाक्षी पाण्ड्य राजा मलयध्वज पांड्यन और रानी कंचना मलाई की पुत्री थीं। जब उनकी लंबे समय तक कोई संतान नहीं हुई तो उन्होंने देवताओं से पुत्र की कामना करने के लिए एक यज्ञ किया था। यज्ञ सम्पन्न होने के बाद उस यज्ञ की अग्नि से एक लड़के के बजाए एक लड़की प्रकट हुई और उनके 3 स्तन थे। राजा मलयध्वज चिंतित हो गए क्योंकि उन्हे अपने राज्य का उत्तराधिकारी चाहिए था। तब आकाशवाणी हुई कि यह बच्ची माता पार्वती की अवतार हैं।
वे अपनी बेटी को सिंहासन के उत्तराधिकारी के रूप में पालें और ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी की कि जब वे अपने पति से मिलेंगी तो तीसरा स्तन गायब हो जाएगा। उसके बाद महाराज और महारानी ने उसी बच्ची को अपनी बेटी मान कर उन्हे पाला और उनका नाम रखा मीनाक्षी । मीनाक्षी का अर्थ है मछली जैसी आँखों वाली।
देवी मीनाक्षी का पालन पोषण उसी तरह किया गया जिस तरह सिंहासन के उत्तराधिकारी का होना चाहिए। राजा मलयध्वज की मृत्यु के बाद, देवी मीनाक्षी को मदुरै का राजसिंघासन सौंपा गया । उन्होंने अपने असाधारण युद्ध कौशल से कई राज्यों पर विजय प्राप्त की। उस के बाद वे हिमालय पहुंची, तब उन्होंने भगवान शिव को देखा।
भगवान शिव को देखने के बाद ही उनका तीसरा स्तन खुद ही गायब हो गया। तब उसके बाद उन्हे इस बात का एहसास हुआ कि भगवान शिव ही उनके होने वाले पति है। फिर उन्होंने भगवान शिव से विवाह का प्रस्ताव रखा । भगवान शिव भी मान गए और उन्होंने देवी मीनाक्षी को वापस मदुरै भेज दिया और कहा कि वे स्वयं जाएंगे उनसे विवाह करने।
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देवी मीनाक्षी भी मदुरै वापस आकर विवाह की तैयारियों में जूट गई फिर आठ दिन बाद भगवान शिव सुंदरेश्वर रूप में पहुंचे और मीनाक्षी से विवाह किया। हर साल रथ यात्रा के समय मीनाक्षी तिरुकल्याणम का त्योहार मनाया जाता है। मदुरै में देवी मीनाक्षी का दर्जा भगवान शिव से ऊपर माना जाता है। वहाँ के लोगों के लिए वे मदुरै की संरक्षक, मदुरै की रानी, मदुराई की माँ मीनाक्षी अम्मान हैं जो अभी भी इस भूमि पर शासन करती हैं ।
मीनाक्षी मंदिर के परिसर में दो मंदिर है। एक मंदिर है मीनाक्षी मंदिर और दूसरे को कहा जाता है प्रधान मंदिर। यहां मीनाक्षी देवी के एक हाथ में तोता है जो कामदेव का प्रतीक है और दूसरे हाथ में एक छोटी-सी तलवार है जिससे यह दर्शाया जाता है कि आधिपती देवी मीनाक्षी है। इनके मंदिर की दीवार पर एक कल्याण उत्सव यानि शादी का एक चित्र अंकित किया गया है। जबकि दूसरे मंदिर में सुंदरेश्वर देव का मंदिर है । यहां पाणिग्रहण समारोह में सुंदरेश्वर देव का हाथ मीनाक्षी देवी के हाथों में सौंपा जाता है।
एक ओर जहां हिन्दू धर्म में कन्यादान किया जाता है, वहीं दूसरी तरफ मीनाक्षी देवी मंदिर में एक अनुपम परम्परा देखी जाती है। यहाँ भगवान शिव का हाथ मीनाक्षी देवी के हाथों में सौंपा जाता है। हर रात सुंदरेश्वर को मीनाक्षी के देवी के गर्भगृह में पालकी से ले जाया जाता हैं। इस दौरान दोनों दम्पति साथ रहते हैं, जिन्हें इस समय पर कोई परेशान नहीं करता।