धर्म संवाद / डेस्क : भगवान विष्णु द्वारा लिए गए 10 प्रमुख अवतारों में कूर्म अवतार दूसरे नंबर पर आता है। इस अवतार में भगवान श्री हरी विष्णु ने एक कछुए का रूप धरा था। इस वजह से इन्हें कच्छप अवतार भी कहा जाता है। हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु ने कूर्म अवतार धारण कर समुद्र मंथन में सहायता की थी। चलिए जानते है इस अवतार के पीछे की कथा ।
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एक बार देवराज इन्द्र का पराक्रम देख कर महर्षि दुर्वासा ने देवराज इंद्र को परिजात पुष्प की माला भेंट की थी। परंतु अहंकारवश इंद्र नें इसे ग्रहण न करते हुए अपने वाहन ऐरावत को पहना दिया । ऐरावत ने उसे भूमि पर फेंक दिया। इस कृती से क्रोधित होकर दुर्वासा ऋषि ने देवताओं को श्रीहीन होने का श्राप दे दिया। फलस्वरूप उनकी सुख-समृद्धि खत्म हो गई। श्राप के प्रभाव से माता लक्ष्मी सागर में लुप्त हो गईं। इससे सम्पूर्ण संसार का सारा वैभव नष्ट हो गया।इसका उपाय निकालने के लिए सब भगवान विष्णु के पास पहुंचे।
भगवान विष्णु ने सबको समुद्र मंथन करने के लिए कहा। इससे लक्ष्मी भी वापस या जाएंगी और अमृत भी प्राप्त होगा । इस अमृत को पीने से देवों की शक्ती वापस आ जाएगी अौर वे सदा के लिए अमर हो जाएँगे। तब भगवान विष्णु के कहे अनुसार राक्षस और देवता मंथन के लिए तैयार हो गए। इसके लिए मंदराचल पर्वत को मथानी और नागराज वासुकि को रस्सी बनाया गया। देवताओं और दैत्यों ने अपना मतभेद भुलाकर मंदराचल को उखाड़ा और उसे समुद्र की ओर ले चले, लेकिन वे उसे अधिक दूर तक नहीं ले जा सके।
पर्वत का आधार नहीं होने के कारण वो समुद्र में डूबने लगा। ये देखकर भगवान विष्णु ने बहुत बड़े कछुए का रूप लेकर समुद्र में मंदराचल पर्वत को अपनी पीठ पर रख लिया। माना जाता है कि कछुए के पीठ का व्यास 100,000 योजन था। इससे पर्वत तेजी से घूमने लगा और समुद्र मंथन पूरा हुआ।