धर्म संवाद / डेस्क : भगवान गणेश को प्रथम पूज्य कहा जाता है। किसी भी देवी –देवता की पूजा से पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है। उन्हें बुद्धि का देवता भी माना जाता है। सभी देवी-देवताओ की तरह इनका भी एक वाहन है। गणेश जी के वाहन हैं मूषक। आखिर विद्या और बुद्धि के दाता गजानन ने एक मूषक को अपना वाहन क्यों बनाया। चलिए जानते हैं।
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पौराणिक कथा के अनुसार एक बार देवराज इंद्र अपनी सभा में किसी गंभीर विषय पर चर्चा कर रहे थे।वहां क्रौंच नाम का गांधर्व भी मौजूद था। इस दौरान वो अप्सराओं से हंसी ठिठोली कर सभा को भंग कर रहा था। ऐसे में क्रोंच का पैर गलती से मुनि वामदेव को लग गया।क्रोध में आकर उन्होंने क्रोंच को चूहा बनने का श्राप दे दिया। जिसके बाद वो एक बड़े से चूहे में बदलने गया।
मूषक बन जाने के बाद, वह पाराशर ऋषि के आश्रम में जा गिरा। चूहे के स्वभाव के कारण वह आश्रम में जमकर उत्पात मचाने लगा। उसने मिट्टी के सारे पात्र तोड़ दिए, आश्रम की वाटिका तहस नहस कर दी और सभी के वस्त्रों और ग्रंथों को भी कुतर डाला। साथ ही आश्रम का सारा अन्न खत्म कर दिया। उस दौरान भगवान गणेश भी वहां मौजूद थे। गणेश जी ने अपना तेजस्वी पाश फेंका, पाश उस मूषक का पीछा करता हुआ पाताल तक गया और उसका कंठ बांध लिया और उसे घसीट कर बाहर निकाल गणेश जी के सम्मुख उपस्थित कर दिया। पाश की पकड़ से मूषक मूर्छित हो गया। होश आते ही मूषक ने गणेश जी की आराधना शुरू कर दी और अपने प्राणों की भीख मांगने लगा।
उसके क्षमा मांगने के बाद,गणेश जी ने कहा तूने ब्राह्मणों को बहुत कष्ट दिया है। मैंने दुष्टों के नाश एवं साधु पुरुषों के कल्याण के लिए ही अवतार लिया है, लेकिन शरणागत की रक्षा भी मेरा परम धर्म है, इसलिए जो वरदान चाहो मांग लो। यह बात सुनकर मूषक का अंहकार जाग उठा और बोला मुझे आपसे कोई भी वरदान नहीं मांगना है इसके बदले आप मुझसे कुछ मांग सकते हैं।
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इस अंहकार भरी बात सुनकर गणेश जी ने मन ही मन मुस्कुराते हुए कहा कि यदि तुम्हारा यही मन है तो तुम मेरा वाहन बन जाओ। तब मूषक ने जैसे ही तथास्तु कहा फौरन ही भगवान गणेश उस पर सवार हो गए।भगवान गणेश के भारी भरकम शरीर के भार से दब कर मूषक के प्राण निकलने लगे। तब मूषक को एक बार फिर से अपनी गलती का अहसास हुआ और उसने भगवान से प्रार्थना की वे अपना भार उसके वहन करने के योग्य बना लें। इस तरह से मूषक के अंहकार को समाप्त करते हुए गणेश जी उसे सदैव के लिए अपना वाहन बना लिया।
एक और पौराणिक कथा के अनुसार, गजमुखासुर नामक असुर ने देवताओं को बहुत परेशान कर दिया। दरअसल उसे वरदान प्राप्त था कि उसे किसी भी अस्त्र से खत्म नहीं किया जा सकता था । इस दानव से पीछा छुड़ाने के लिए सभी देवता भगवान गणेश के पास पहुंचे। तब भगवान गणेश ने उन्हें गजमुखासुर से मुक्ति दिलाने का भरोसा दिलाया। उसके बाद भगवान गणेश और गजमुखासुर का भीषण युद्ध हुआ। युद्ध में श्रीगणेश का एक दांत टूट गया। तब क्रोधित होकर श्रीगणेश ने उस टूटे दांत से ही गजमुखासुर पर प्रहार किया। वह घबराकर चूहा बनकर भागा लेकिन गणेशजी ने उसे पकड़ लिया। मृत्यु के भय से वह क्षमायाचना करने लगा। तब श्रीगणेश ने मूषक रूप में ही उसे अपना वाहन बना लिया।