धर्म संवाद / डेस्क : महाभारत के पात्र भीम बहुत बलशाली थे. उन्हें महाबली कहा जाता था. कहा जाता है कि भीम के अंदर 10 हजार हाथियों का बल था. बताया जाता है कि भीम वायुदेव के अंश थे. माता कुंती ने भीम को पवन देव के आशीर्वाद से पाया था. इस वजह से उन्हें पवनपुत्र कहा जाता था. वहीं हनुमान जी को भी पवनपुत्र माना जाता है इसलिए भीम हनुमान जी के भाई कहलाते थे. भीम को अपने बल पर अभिमान था. इसी घमंड को हनुमान जी ने तोड़ा था.चलिए जानते हैं ये कहानी.
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श्री राम के वैकुण्ठ जाने के बाद , हनुमान जी गंधमादन पर्वत पर रहते थे. उस समय पांडव द्रौपदी के साथ इसी क्षेत्र में वनवास काट रहे थे. एक दिन द्रौपदी ने भीम से ब्रह्म कमल का फूल मांगा, जो की गंधमादन पर्वत पर था. द्रौपदी की इच्छा पूरी करने के लिए भीम गंधमादन पर्वत की ओर चल दिए. रास्ता में उन्हें एक बूढ़ा वानर दिखाई दिया. भीम को अपनी ताकत पर बहुत घमंड था. घमंड भरी आवाज ने भीम ने उस वानर से कहा कि रास्ते में से अपनी पूंछ हटाओ.
वो वानर और कोई नहीं बल्कि स्वयं हनुमान जी थे.हनुमान जी समझ गए कि भीम को अपनी ताकत पर घमंड हो गया है. उन्होंने कहा कि तूम ही मेरी पूंछ हटा दो. भीम ने झुककर हाथ से पूंछ पकड़कर एक ओर रख देना चाहा. लेकिन पूंछ अपनी जगह से हिली तक नहीं. फिर उन्होने अपने दोनों हाथों से पूंछ उठाना आरम्भ कर दिया. लेकिन पूंछ तो जैसे जमीन से चिपक गई थी. भीम की पूरी शक्ति लगाने के बाद भी वह टस से मस न हो सकी. इसके बाद भीम को आभास हो गया कि यह कोई साधारण वानर नहीं हो सकता है. भीम ने वानर के समक्ष हाथ जोड़कर कहा, कृपया आप अपना वास्तविक परिचय दें, आप कौन हैं?
तब हनुमान जी ने भीम को अपने वास्तविक रूप में दर्शन दिए और हनुमान जी ने भीम से कहा, आप पूंछ हटाने में सफल इसलिए नहीं हुए क्योंकि बल के साथ विनम्रता होनी चाहिए, अहंकार नहीं. इसके बाद भीम को बहुत पछतावा हुआ. उन्होंने हनुमान जी से क्षमा मांगी और उनका घमंड चूर-चूर हो गया.