सोशल संवाद / डेस्क : शनि देव को न्याय का देवता माना जाता है। कहते हैं कि शनि देवता की वक्र दृष्टि से इंसान तो क्या देवी -देवता भी नहीं बच सकते हैं। एक पौराणिक कथा के अनुसार देवों के देव महादेव भगवान शिव भी इनकी दृष्टि से बच नहीं पाए ।
कथा के अनुसार, एक बार शनिदेव अपने आराध्य भोलेनाथ के दर्शनों के लिए कैलाश पर्वत पर पहुंचे थे। उन्होंने भगवान भोले को प्रणाम कर पहले उनसे आशीर्वाद लिया फिर शनिदेव ने भगवान शिव को विनम्र भाव से बताया कि कल आपकी राशि में मेरी वक्र दृष्टि पड़ने वाली है। इस पर भोलेनाथ आश्चर्यचकित हुए और पूछा कि कितने वक्त के लिए शनिदेव की दृष्टि उनकी राशि में रहेगी।
इतना सुनते ही महादेव चौंक गए और उन्होंने पूछा आप कितने समय तक अपनी वक्र दृष्टि मुझ पर रखेंगे?
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शनिदेव बोले ,कल सवा प्रहर के लिए आप के ऊपर मेरी वक्र दृष्टि रहेगी। जिसके बाद भगवान शंकर चिंतित हो गए और उनकी दृष्टि से बचने के लिए उपाय सोचने लगे।
महादेव ने एक हाथी का रूप ले लिया और पृथ्वी लोक पहुँच गए और वक्र दृष्टि के समय तक प्रथ्वी पर उसी रूप में छिपे रहे। वक्र दृष्टि का समय पूर्ण हुआ तो भगवान शिव कैलाश की ओर लौट चले। जैसे ही भगवान शिव कैलाश पर आए उन्होंने देखा कि शनिदेव पहले से ही वहाँ मौजूद थे। शिव जी शनि देव को देखकर बोले, देखा शनि देव आपकी वक्री दृष्टि का मुझ पर कोई असर नहीं पड़ा मै बच गया ।
तब शनिदेव ने मुस्कुरा कर कहा, प्रभु मेरी वक्र दृष्टि के कारण ही आपको देव योनि से पशु योनि में पृथ्वी लोक पर इतने वक्त तक वास करना पड़ा है। शनि देव की ये बात सुनकर भगवान भोलेनाथ मुस्कुरा दिए और शनिदेव की न्यायप्रियता को देखकर प्रसन्न हो गए और उन्हें अपना आशीर्वाद दिया।
इस कथा से हमें ये सिख मिलती है कि भगवान भी संसार के नियमों से पूरी तरह वंचित नहीं है इसलिए अपने कर्म से या अपने दायित्व से कभी भी पीछे नहीं हटना चाहिए।